मंगलवार, 3 जून 2014

Articless


मियां ये 370 क्या होता है?
                                                                                       
                                                                                               - अंकित झा 

शहर से बाबू पढ़ कर आये हैं, खूब पूछ परख हो रही है, पूरे घर में हंगामा सा मचा हुआ है, काहे कि छोटे बाबु पढ़ कर आये हैं, दिल्ली से. गाँव के बड़े बूढ़े बार बार आ जा रहे हैं, आते जाते एकाध प्रश्न पूछ लेते हैं, जैसे ही उत्तर मिला गौरवान्वित हो कर लौट रहे हैं, और यदि उत्तर नहीं मिल रहा है, तो अफ़सोस भी ज़ाहिर कर रहे हैं कि पैसा बर्बाद कर दिए बाबु, कुच्छो न किया इ परदेस जा कर. 

शाम की बात थी, छुटकन बाबू जरा सैर पर निकले थे, गाँव के चौपाल पर उनकी मुलाक़ात हो गयी मुखिया और उनके कुछ मित्रों से, हमारे गाँव की यही तो संस्कृति है कि पढ़ के कोई भी आये, गाँव गौरवान्वित होता है, ख़ुशी और ग़म जो भी हो, गाँव हंस कर स्वीकार करता है. मुखिया जी ने पूछा, अरे भई आज कल इ 370 बहुत सुन रहे हैं, का है इ 370? तनिक बताओ तो. अब इसे परीक्षा कहिये या फिर कुछ जानने की जिज्ञासा, मुखिया के भाई ने भी पूछ ही दिया कि हां मिया ये 370 क्या होता है? कोई नया कानून है का? शहरी बाबु मुस्कुरा दिए और कहा कि जी कानून ही है, परन्तु नया नहीं है, बहुत पुराना है, हमसे और आपसे भी, यही मुखिया जी के उम्र की होगी. सभी हंस दिए, परन्तु हंसी की गूँज में मुद्दे की अहमियत कम नहीं हुई, बाबू बोलना शुरू हुए, कश्मीर तो आप जानते ही हैं, अपने भारत का सिरमौर जब हमारे पड़ोसी देश पकिस्तान हमसे अलग हुआ था, तो कश्मीर को लेकर खूब रागरघस मचा, भारत बोले कि कश्मीर हम लेंगे, पाकिस्तान भी अप्नेज़िद्द पर अड़ा रहा, बाद में कश्मीर को आजाद मुल्क बनाने का फैसला किया. इतने में रघुबीर चाचा बोल उठे, अरे! हमारी वैष्णो मैया बसती हैं वहां, गर्भ्गुफा है वहाँ , कैसे दे देंगे कश्मीर? बाबु उन्हें चुप करते हुए बोले, हाँ हाँ चाचा यही तो बात थी, फिर जा के घमासान युद्ध हुआ, भारत और पकिस्तान में, हमारे प्रधान मंत्री संयुक्त राष्ट्र पहुंचे सहायता के लिए इस मुद्दे पर. संयुक्त राष्ट्र ने श्वेत पृष्ठ जारी किया और कहा कि कश्मीर पर फैसला जनमत संग्रह से हो, जब प्रदेश में शांति बहाल हो जायेगी. कहते हैं गलती की उन्होंने, और गलती थी भी, यदि युद्ध से कोई फैसला आ सकता तो उचित होता क्योंकि आज 67 बरस होने को आये और न ही शांति बहाल हो पायी और न ही वो जनमत संग्रह. उसी के फलस्वरूप एक अलग दर्जा देने की बात की गयी, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के अनुसार जम्मू और कश्मीर को देश में विशेष दर्जा प्राप्त है, जिसके अनुसार राज्य के कुछ ही निर्णय केंद्र सरकार द्वारा लिए जा सकते हैं, जिसके अलावा सभी फैसलों पर राज्य सरकार तथा विधान सभा का अधिकार है, इसी तरह से कई अलग आदिकार निहित है जम्मू और कश्मीर के पाले में जैसे वहाँ पर राष्ट्रपति शासन नहीं लगाया जा सकता, न ही देश में लगे आपातकाल को वहाँ लागू किया जा सकता है. यही सब कुछ है बस, और क्या. बाबु ने बोलना समाप्त किया. सभी के आँखों में गर्व महसूस किया जा सकता था, कि बाबु ने कितनी सुन्दरता से समझाया इस बात को. मुखिया जी ने अपनी मूंछों पर ऊँगली फेंरते हुए पूछा कि फिर आज कल काहे इ मुद्दा उठ रहा है, इ तो बहुत पुराना लग रहा है? 

अरे उ का है चाचा कि जो नया सरकार आया है न, उ कुछ प्रश्न उठाया है इस अनुच्छेद के सार्थकता पर. तो इसी वजह से पूरा बहस छिड़ा हुआ है. अब कोई चाहता है कि ये अनुच्छेद और इसका प्रभाव जस का तस बना रहे तो कोई इसके प्रभाव को कम कर इसे समाप्त करने का पक्षधारी है. किसी भी मुद्दे को प्रभावहीन बनाने से पूर्व उसके प्रभाव व दुष्प्रभाव को समझना अति आवश्यक होता है, जैसे देखिये, आतंकवाद एक समस्या है, परन्तु इससे लड़ने हेतु इसके सभी दुष्प्रभाव को जानना आवश्यक है, आर्थिक, सामाजिक, मानवीय, नैसर्गिक इत्यादि. किसी भी समस्या का समाधान उस के संरचना में ही छुपा होता है, 370 कोई समस्या है या नहीं, ये अभीतक तय नहीं हो पाया है. इसके अंतर्गत आने वाले विशेष प्रावधानों के नतीजतन जम्मू और कश्मीर के एक बड़े हिस्से को सदा ही इससे असंतोष रहा है. असंतोष कभी कभी विद्रोह का भी रूप धारण करती है परन्तु यह कभी जाहिर नहीं हो पता है. इस अनुच्छेद के करणवश हुए उपद्रवों तथा कश्मीरी पण्डितों के विस्थापन के बाद से ही दक्षिणपंथी विचारक इस अनुच्छेद के विघटन की बात कर रहे हैं. परन्तु, इस अनुच्छेद के कंधे पर अपनी राजनैतिक हथियार चलाने वाले राजनैतिक दल कदापि ऐसा नहीं चाहेंगे. भारत के सिरमौर में आये दिन जो घटनाएँ व दुर्घटनाएं होती हैं, उनको इस अनुच्छेद से जोड़कर अवश्य देखा जाना चाहिए, किसी कारणवश ही सूबे में सुरक्षातंत्र मजबूत नहीं हो पाया है. विशेष दर्जे के बावजूद जब तीसरे दर्जे सा हाल बना के रखा गया है तो निश्चित ही ये क्रियान्वयन में लाचारी तथा अकर्मण्यता के फलस्वरूप है. 

कश्मीर में एक समस्या था, अब कश्मीर स्वयं एक समस्या है. दोष किसका है, ज्ञात नहीं. पीड़ित कौन है, देख लीजिये, सिर्फ कश्मीर, कश्मीरी या पूरा देश? उत्तर निकाल पाना दुश्कर सा लगता है, उसपर से कश्मीर के प्रति लोगों की सहानुभूति तथा चिंता देखकर कुछ विशेष करने का सबका मन करता है. कुछ विशेष तो पहले से ही हो रहा है, वहाँ, साधारण ही क्यों नहीं छोड़ देते, जिस तरह बिहार प्रगति कर रहा है, वहाँ का गुंडाराज आज कल थोडा आराम कर रहा है, उसीप्रकार कश्मीर को साधारण क्यूँ नहीं छोड़ देते हैं? उसपर से लटका दी है, जनमत संग्रह की तलवार. अरे समस्या सुलझाए कौन? इस कश्मीर का आका है कौन? या फिर ये आज़ाद है? उच्चश्रिंखिल, बिना किसी अवलम्ब के. कश्मीर अवचेतन में डूबा एक अबोध बच्चे की तरह है, जिसके माथे से खून बह रहा है परन्तु उसे उस खून कि नहीं बल्कि उस चोट की फ़िक्र है जो उसे पीड़ा दे रही है. इस पीड़ा में आँखों से आंसू भी आ रहे हैं और माथे से खून भी. पहले क्या पोछा जाये? तय कर लें.     

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