शनिवार, 17 मई 2014

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चुनाव विशेष

ये इतिहास नहीं भविष्य है!!!

                               -    अंकित झा

नव गति नव लय ताल छंद नव
नवल कंठ नव जलद मंद्र नव

नव, नवल, नवीन, हर ओर एक नयापन सा छाया हुआ है. उम्मीदें अब वास्तविकता में बदल चुकी हैं. चुनाव संपन्न, नतीजें प्रस्तुत हो चुके हैं और वो करिश्मा हो चुका है, जिसकी प्रतीक्षा सभी को थी. तथाकथित अच्छे दिन आ गये. 30 वर्षों बाद देश को एक ऐसी सरकार मिलेगी जो पूर्ण बहुमत से संसद में आएगी. कोई जोड़-तोड़ का गणित नहीं, गठबंधन के लालच नहीं, कोई राजनैतिक गुणा-भाग नहीं सिर्फ स्वप्न के पूर्ण होने का उल्लास. देश के हर क्षेत्र में कमल खिल चूका है, कश्मीर से कन्याकुमारी तथा नागालैंड से नवसारी हर जगह कमल ही कमल खिला हुआ दिखाई देता है. देश के सबसे पुरानी पार्टी की सबसे ऐतिहासिक तथा शर्मनाक हार. कहां प्रधानमंत्री बनने का स्वप्न तथा स्थिति आज विपक्ष भी न बना पाने की. यह जीत ऐतिहासिक नहीं तो और क्या है? इस बार कोई सहानुभूति नही जीती, कोई भावनात्मक प्रबलता हावी नहीं हुई, कोई जातीय समीकरण नहीं चले, चला तो बस एक नाम, नरेन्द्र मोदी. मित्रों! की वो झंकार जहां जहां कानों में गूंजी उधर कमल खिला, वन्दे मातरम् की टंकार जिस दिशा में पहुंची वहाँ कमल खिला, जहां कभी नैराश्य बिखरा पड़ा था आज वहाँ उम्मीद के कमल खिल रहे हैं. हर ओर एक ही नाम, एक ही पार्टी, एक ही शोर, एक ही गर्जना, एक ही विजय गान. इतिहास क्या है? समय का ग़ुलाम. समय क्या है? मानवीय कर्मों के सिद्धि की अवधि. अवधि, जब समय भी एक क्षण थमकर मनुष्य को प्रणाम करने को रुकता है, उसी क्षण को ऐतिहासिक क्षण कहते हैं, आज वही है. समय एक बार रुक कर नरेन्द्र मोदी को प्रणाम कर लेना चाहता है. साहस, वीरता तथा पराक्रम के नए आयाम को गढ़ने के लिए. इस जीत के कई मायने हैं, कोई कहेगा ये कांग्रेस की हार है, तो कोई उसके नीतियों की हार, परन्तु ये कोई नहीं कहेगा कि ये जीत एक विश्वास की है, विश्वास कि अभी भी परिवर्तन संभव है.

गठबंधन के जोड़ तोड़ के परे एक स्थायी सरकार की अपेक्षा को पूर्ण बहुमत के साथ सहयोग मिला, 286 कमलों को भेंट स्वरुप दिया गया. इतने कमल आज तक नही मिले थे भेंट में, तीस वर्ष बाद किसी सरकार के पास गठजोड़ का बहाना नहीं होगा. ये हर्ष का समय है, तो इसे कतई जाने मत दीजिये, हिंदी के जयगान का समय है, भारतीय संस्कृति के विजयघोष का समय है, इस जश्न को चलने दिया जाये. ये इतिहास नहीं है, इतिहास तो अभी रचा जाना बाकी है. ये भविष्य की उम्मीद है, एक आकांक्षा है कि कल आज से बेहतर होगा. इस पूर्ण बहुमत के जश्न में डूब जाने दीजिये, निकालिए मत. ग्लास आधी खाली है या पूरी भरी, समय आ गया है जानने का. उम्मीद है कि भविष्य में इतिहास रचा जायेगा, जो अब तक न हुआ हो सकता है, अब हो. जय हे.  

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