रविवार, 22 दिसंबर 2013

Movie Review

धूम 3 :प्रतिघात के महाकाव्य से परे
                                                                          - अंकित झा 

आमिर खान की फ़िल्म और उसका रोमांच। पता है कि कुछ तो अच्छा होगा पिक्चर में बस दिल कहता है कि सब ठीक ही हो। आखिर मिस्टर परफेक्शनिस्ट जो हैं आमिर। उम्मीदें रहती हैं उनसे, और हम जैसे उनके फेन को तो कुछ ज्यादा ही। और नए नए जन्मे ये  जो हर दूसरी भारतीय सिनेमा के दृश्यों को उनकी किसी फ़िल्म कि चोरी का कहतें हैं।  और जब ऐसी धूम धड़ाका वाली एक्शन फ़िल्म हो तो फिर क्या कहने। आमिर के नाम के साथ। आशाएं, आकांक्षाएं व अद्वितीय चीज़े स्वतः ही जुड़ जाती हैं। २० को उनकी ये फ़िल्म आयी, आयी तो फिर देखना है ही, कोई देखे उससे पहले, मतलब फर्स्ट डे- फर्स्ट शो। फिर क्या था एडवांस बुकिंग कि होड़। टिकट मिलने का मतलब ओलिंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली ख़ुशी। पिछले 10  वर्षों में सिर्फ 8 फिल्में और एक सामाजिक रियलिटी शो, इतनी बार ही आमिर खान ने काम किया है. 7 साल के लम्बे इंतज़ार के बाद यशराज बैनर की अतिमहत्वकांछी सीरीज धूम 3 आ ही गयी. साथ ही आमिर खान भी एक साल बाद परदे पर लौटें। यह आश्चर्य कि बात थी कि इतनी बड़ी फ़िल्म की जिम्मेदारी आदित्य चोपड़ा ने 'टशन' जैसी फ़िल्म बनाने वाले विजय कृष्ण आचार्य के हाथों में दी गयी। यह उनकी बतौर निर्देशक दूसरी फ़िल्म थी। ट्रेलर को देख के लगा मनो क्या होगा इस बार अलग, वही गाड़ियां तो दौड़ रही हैं, वही अभिषेक बच्चन पकड़ेगा। अंत में हार जायेगा। संगीत सुना, पिछले बार के मुक़ाबले, अधिक कर्णप्रिय। मलंग और बन्दे हैं हैम उसके तो दिल में बस गया है, धूम मचाले पुराना वाला अच्छा था, कमली कमली कुछ क्रेजी किया रे जैसा ही है। पर अच्छा है, एक और गीत है, तू ही जूनून; मोहित चौहान ने गाया है। इस गायक से तो दिन व दिन उम्मीद बढ़ती ही जा रही है। पहले पड़ाव में तो पास हो गयी मेरे लिए। संगीत पक्ष अच्छा रहा, साल के ४ महतवपूर्ण या कहें 4 बड़ी फ़िल्म का संगीत इतना अच्छा नहीं था; कृष3, चेन्नई एक्सप्रेस, बेशरम का संगीत बेजान था। 
फ़िल्म देखने पहुचे, बड़ी भीड़, जैसा कि उम्मीद था। फ़िल्म शुरू हुई, चौथे मिनट पे जॅकी श्रॉफ का वो दमदार संवाद और संदेशात्मक आवाज। मजा। और उसके बाद फ़िल्म पूर्णतः आमिर खान को समर्पित। पिछली बार की तरह इस बार भी क्रेडिट डांस के साथ ही होता है, आमिर की मेहनत  साफ़ नज़र आती  है, उनका थिरकना युवाओं को भी थिरकने पर विवश करता है, उत्तम। कोई ये न कहे कि आमिर ज्यादा अच्छे नाचे या ऋतिक? कोई मुक़ाबला नहीं। दोनों का दौर अलग है, और दरकार भी। धीरे धीरे फ़िल्म इतनी तेज़ी से आगे बढ़ती है कि उदय चोपड़ा के असहनीय संवाद भी तुरंत नेपथ्य में चले जाते हैं। एंट्री सीन काफी लम्बे हैं, छोटे हो सकते थे। पहला हाफ काफी चुस्त है, और उतनी ही तेज़ी से ये आगे बढ़ता है, पीछे क्या हुआ इसकी परवाह किये बिना। सभी एक्शन सीन शानदार तरीके से फिल्माए गए हैं, उतनी ही सुंदरता से शिकागो को फ्रेम में उतारा गया है, हां great Gatsby जितना सुंदर नहीं, पर उससे कम भी नहीं। कुछ स्टंट सांसे रोक देने वाली है, उनको आमिर खान सहजता से निभाते हैं।
कहानी अच्छी है, पर बहुत छोटी। आमिर का प्रभुत्व यहाँ साफ़ दिखता है, जब फ़िल्म की हीरोइन को महज चंद गानों में थिरकने के लिए रखा गया हो। अभिषेक को आमिर के बाद सबसे अधिक स्पेस मिला है, परन्तु युवा होने के बावजूद वो गानों से नदारद हैं। भूमिकाएं छोटी होने के बावजूद, किरदारो पर मेहनत की गयी है। पटकथा शानदार है, और पहले और दुसरे हाफ को पूर्णतः अलग करती है, परन्तु कथा का मूल है, प्रतिशोध। प्रतिशोध भारत की फिल्मों का ही मूल है, हर तीसरी फ़िल्म में बदला ही मकसद है। यहाँ पे कहानी इस तरह लिखी गयी है, कि  सहानुभूति खलनायक के लिए है। आमिर दूसरी बार खलनायक की भूमिका कर रहे हैं, और इस बार भी यश राज के लिए, फना के बाद। आमिर ऐसे अभिनेता है जिनपर खलनायक का चरित्र अच्छा नहीं लगता। अर्थव्यवस्था के कमर माने जाने वाले बैंक व बैंकरों को फ़िल्म में खलनायक दिखाया गया है, सच भी है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था का वो बुरा दौर कही न कही बैंको के गलत नीतियों का ही नतीजा था। यहाँ पृष्ठभूमि अमेरिका ही है, और पठकथा की शुरुआत बैंक के क़र्ज़ वसूली से है, जहाँ पर कि अपने जीवन के सबसे बेहतरीन करतब दिखाने के बावजूद इक़बाल(जॅकी) बैंक वालो को मना नहीं पाटा और नतीजतन उसे आत्महत्या का कदम उठाना पड़ता है। यहीं से शुरू होता है, बैंक को बर्बाद करने कि शाहिर(आमिर) कि ज़िद्द। उसे रोकने के लिए भारत से पुलिस अफसर जय दीक्षित(अभिषेक) व अली (उदय) को शिकागो बुलाया जाता है, क्योंकि मरते वक़्त जॅकी के शब्द 'बैंक वालो तुम्हारी ऐसी कि तैसी' को हर बार शाहिर बैंक लूटने के बाद लिख के जाता है, और एक जोकर का मुखौटा भी छोड़ जाता है। उनका साथ देने के लिए टैब्रेट बेथेल एक संक्षिप्त सी  भूमिका में हैं। वहीँ आमिर के साथ थिरकने के लिए कैटरीना को रखा गया है, वो बहुत अच्छा थिरकती भी हैं। चोर पुलिस का ये खेल दुसरे हाफ में चरम पर पहुँचता है, जब शाहिर के सबसे बड़े राज़ के बारे में कि उसका एक जुड़वाँ भाई है, जय को पता चल जाता है। कहानी के साथ आँख मिचौली चलती ही रहती है, और हम एक पहले से तय अंत की ओर बढ़ जाते हैं, कोई बताये कि इतने मुश्किल से बच के निकले दो चोर सुबह में क्यों भागने की कोशिश करेंगे? ये कुछ हजम नहीं होता।
फ़िल्म की जान आमिर और उनकी शानदार अदायगी है, वो हर सीन में जान डालते हैं, फिर वो गुसैल और शातिर शाहिर हो या चुलबुला और बचपने से भरा समर। अभिषेक भी अच्छा करते हैं, पिछले दो बार से ज्यादा अच्छा। इस बार हालाँकि रोल कम है, फिर भी। आमिर के साथ उनकी केमेस्ट्री शानदार है, भले ही वो चोर पुलिस कि दुश्मनी हो या मासूम समर से उनकी दोस्ती। उदय चोपड़ा ठीक हैं, उनकी ये अपनी फ़िल्म है, गाड़ियां अच्छा दौड़ा लेते हैं। कटरीना ने ये फ़िल्म चुनकर निराश किया है, वो महज गानों में थिरकने के लिए और अंग प्रदर्शन के लिए हैं, कोई दो राय नहीं कि पिछले संस्करण में विपाशा कि इससे लम्बी भूमिका थी।  बेथेल ठीक हैं, और जॅकी प्रभावित करते हैं, फ़िल्म में और कोई नहीं है जिसकी आभने को सराहा जाये। फ़िल्म के असली नायक इसके क्रू मेंबर हैं, कहानी, संवाद और पटकथा तीनो को निर्देशक विजय कृष्ण आचार्य ने लिख है और सभी काफी अच्छे हैं, आमिर के संवाद बहुत अच्छे हैं, खासकर नरेशन में चलते उनके संवाद। सुदीप चट्टर्जी जो कि इक़बाल, चक दे इंडिया जैसी फिल्मो में अपने सिनेमेटोग्राफी का लोहा मनवा चुके हैं, शानदार तरीके से हर फ्रेम को रचते हैं, वो शानदार रहे हैं। संपादन रितेश सोनी के जिम्मे रही और उनका काम सराहनीय है, परन्तु अभिषेक के एंट्री सीन को छोटा कर सकते थे। संगीत व नृत्य फ़िल्म के मजबूत पक्ष हैं, और इसके लिए फ़िल्म को जरूर देखा जा सकता है। प्रीतम हमेशा से ही अच्छे संगीतकार रहे हैं, और यहाँ वो खुल के निखरे हैं। फ़िल्म अंततः थोडा निराश करती है, इसलिए नहीं कि ये एक ख़राब फ़िल्म है, नहीं, यह एक सुगठित व सुनिर्मित महाकाव्य है,. परन्तु आमिर से लोग इससे बेहतर कि उम्मीद करते हैं, अब आमिर महज एक अभिनेता नहीं हैं, वो मार्गदर्शक हैं, धूम 3 उनके मार्गदर्शन का एक चरण है। इसे अवश्य देखा जाये, और किसी अफवाहों पर ध्यान न दे कि ये किसी हॉलीवुड की चोरी है, होगी, परन्तु हॉलीवुड में कोई आमिर नहीं है, कोई बीटा नहीं है जो अपने पिता के प्रति अपनी भावनायें इस तरह व्यक्त करे, वहाँ कोई भाई नहीं जो कहता हो बाबा ने कहा था हाथ नहीं छोड़ना, वहाँ कोई पुलिस नहीं जो कहता हो मैं तुम्हे बचाना चाहता हु। ये भारत के आत्मा कि अंग्रेजी लिबास वाली फ़िल्म है। जरुर देखा जाये। 

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