धन्यवाद युवराज, देश को क्रिकेट से इश्क़ करवाने के लिए.
- अंकित झा
2005 में फ़ॉर्म ख़राब और फिर टीम में वापसी के बाद वेस्टइंडीज़ के विरुद्ध लगाया वो शतक भी कम यादगार नहीं था, जब युवराज के मुँह से गालियाँ फूट पड़ी थी. वो ग़ुस्सा उसके चरित्र की द्योतक थी. दौड़ूँगा, गिरूँगा, फिर उठूँगा, दौड़ूँगा, फिर गिरूँगा, फिर उठूँगा, और यूँ ही क्रम चलता रहेगा. युवराज द्रविड़ की टीम का वो हिस्सा था जिसके बिना जीतना नामुमकिन सा था. प्रमाण के लिए 2006 में लगातार 3 सिरीज़ (दक्षिण अफ़्रीका, पाकिस्तान और इंगलैंड) में मैन और दी सिरीज़ रहे तो टीम तीनों सिरीज़ नहीं हारी और फिर वेस्ट इंडीज़ में जब बल्ला कुछ शांत हुआ तो भारत वो सिरीज़ 4-1 से हारा. 2007 के बाद क्रिक्केट का एक नया दौर शुरू हुआ. टी20 वाला दौर जब क्रिकेट पर चकाचौंध छा गयी. इस चकाचौंध में युवराज सिंह ने अपनी अलग चमक बनायी, फिर वो छः छक्के हों, या कमर दर्द के साथ राजकोट में खेली गयी 138 की अद्भुत पारी. युवराज वो सब हैं जो फ़ैन उसे कहते हैं, वो सब जो आलोचक उसे कहते हैं, वो सब जो उसने हासिल किया, वो सब जो वो नहीं कर पाया, वो सब जो उसके पहले क्रिकेट में था, वो सब उसके बाद भी होगा. युवराज मेरे लिए क्रिकेट था और क्रिकेट मेरे लिए युवराज. युवराज कैन्सर के विरुद्ध लड़ाई है, युवराज 2014 टी20 वि श्व कप फ़ाइनल की नाकामी है, युवराज विश्व कप का हीरो है, युवराज वो यादें हैं जिसने कितनी ही बार हमें उस दौर में मुस्कुराने का मौक़ा दिया जब क्रिकेट इतनी तेज़ नहीं हुआ करती थी.
युवराज मेरे लिए वो सब पारी हैं, जिन सब के बदौलत उनके प्रति मेरी दीवानगी बढ़ती गयी.
युवराज भारतीय क्रिकेट का वो नाम है जिसने अज़हरुद्दीन युग के मध्यक्रम बल्लेबाज़ी की निराशा से गांगुली युग की आशा, द्रविड़ युग के आरोहण और धोनी युग की दबंगई से दुनिया को अवगत करवाया. क्रिकेट के मैदान पर युवराज मुझे हमेशा याद रहेंगे, उनके अलविदा कहने से दुःख तो है लेकिन खेल यही है, जीवन यही है, कुछ भी हमेशा के लिए नहीं है. बाक़ी और भी लिखेंगे, तब तक के लिए इतना ही कि युवराज एक भावना है, आज भारतीय क्रिकेट में एक भावना की लहर थोड़ी कम हो गयी.
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