रविवार, 9 जून 2019

कविता

परेशानी

- अंकित झा 


सुनों,
उन्हें तुम्हारे चुटकुलों से
परेशानी होने लगी है।
हो सकता है कल तुम्हारे
बोलने से भी होने लगे।
आज हंसाने से हुई है,
कल हँसने से भी होने लगे।
परेशानी ही तो है,
ना जाने कब हो जाये,
किससे हो जाये,
कौन समझाता फिरे,
कौन बताता फिरे,
हमारे हिस्से में कल तक प्रतिरोध था,
आज बस विरोध बचा है,
हो सकता है कल सिर्फ
अनुरोध बचे।
ये सब होने से पहले,
हमें तय करना होगा,
हमारे संघर्ष के आयाम,
जहाँ किसी धर्म के चक्कर में
दो बेटियों में फर्क नहीं करेंगे,
जहाँ जाति को लेकर
मृत मनुष्यों में फर्क नहीं करेंगे,
जहाँ दल को लेकर दो
नेताओं में फर्क नहीं करेंगे,
और भी बहुत कुछ।
जिससे हमारी करुणा
सबके साथ रहे,
हमारा सम्मान
सबके प्रति रहे,
और हमारा मज़ाक
सबके लिए बराबर हो।
इतना ही करना है
इन स्वयंभुओं से लड़ने के लिए,
जो धिक्कारते और ललकारते रहेंगे
तुम्हारी अच्छाई के पीछे छिपी
ज़ाहिलियात को।
लेकिन हम यूँ ही रहेंगे
तटस्थ।
अपने विचारों और संघर्षों के साथ।।

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