मंगलवार, 3 सितंबर 2019

मित्र के नाम

युद्ध और शांति 

- अंकित झा  


युद्ध और शांति,
दोनों के मध्य छिपा होता है
एक वर्ग।
एक वर्ग जो नहीं चाहता
इनमें से एक।
कई बार एक ही झेलते हैं
दोनों अपने अंदर
युद्ध और शांति।
युद्ध स्वयं से कि इस में हम कहां खड़े हैं
शांति कि अंदर यह युद्ध चल रहा है।
मित्र तुम्हारी इस लड़ाई के साथ
मैं रोज़ यह झेलता हूँ
युद्ध और शांति अपने अंदर।
तुम चाहो तो हमे युद्ध की बधाई दो,
हम शांति के लिए लड़ते रहेंगे
एक पिता के लिए कि वो वापस
आये अपने छोटी सी क्रांति मशाल के पास
एक भाई के लिए जो
अपनी 'प्रिय' को फिर से पढ़े।
एक जीवनसाथी के लिए जो
हाथ थामे अपनी सताक्षी का
और दोनों एक दूसरे को देख कर
कुछ यूं मुस्कुराये कि
युद्ध शर्म से शांति के सामने घुटने टेक दे।।

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