क्या यह भी कोई नारीवाद ही है?
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अंकित
झा
सेक्स अम्मा, अर्थात् दिल्ली विश्वविद्यालय के युवा मन के बहकाव तथा युवावय कि समस्याओं को सुलझाती एक ऐसी महिला का आविर्भाव जो कि निहायती भेदभावपूर्ण तथा दकियानूसी प्रतीत होता है. यह महिला दक्षिण भारतीय मूल की है जो छात्र-छात्राओं को इडली कहती है, हर प्रश्न के बाद ‘अइय्यो’ कहती है. छात्र-छात्राएं अपनी काम इच्छाएं तथा काम वासनाएं और इससे जुड़े प्रश्न इनसे पूछते हैं और सेक्स अम्मा अपने अनुभव से उनके हर प्रश्न का उत्तर देती हैं.
एक आम अवलोकन में यह स्पष्ट दिखता है कि दिल्ली
विश्वविद्यालय के छात्र तथा छात्राएं किस विचार शून्यता से गुजर रहे हैं. परन्तु
प्रगतिवादी विचार तथा नारीवादी विमर्श के सबसे प्रखर समर्थक भी नार्थ कैंपस के
छात्रा मार्ग और कैवेलरी लेन में घूमते हैं. यह अलग विषय है कि इन विमर्शों और
विचारों पर सभी के द्वारा कितना पढने की चेष्टा की गयी है? प्रश्न किसी का मुखौल
उड़ाने का नहीं है. यह एक बड़े प्रश्न की ओर हमें ले के जाता है, वो यह है कि क्या शिक्षा
के सही अर्थ से भटकाव सही बात है? शिक्षा के किसी के अन्दर क्या आविर्भाव है यह
जानना आवश्यक है. थ्योरी के साथ सबसे बड़ी परेशानी यह है कि इसका धरातल पर उपयोग इस
दुष्टता तथा चयनात्मक ढ़ंग से किया जाता है कि उस थ्योरी के कई मायने सामने आ जाते
हैं.
पत्रकारिता मेरे लिए आज भी किसी पावन कर्तव्य से कम नहीं
है, और विश्वविद्यालय के स्तर पर पत्रकारिता को बढाने का स्वपन सदैव देखता रहा
हूँ, यही कारण था मीमांसा की उत्पत्ति का. खैर, कुछ अन्य संस्थाएं जैसे डीयु बीट, यूनिवर्सिटी
एक्सप्रेस आदि भी अच्छा काम कर रही हैं, परन्तु, विश्वविद्यालय में किसी वैचारिक
संचार से अधिक ये मनोरंजन तथा रिपोर्टिंग पर अधिक ध्यान देती हैं, इस में कोई दो
राय नहीं है. कभी-कभी यह मनोरंजन फूहड़ता तथा अश्लीलता का भी रूप ले लेती हैं. इसी
अश्लीलता का सबसे दुखद उदाहरण है, डीयु बीट का सेक्स अम्मा कॉलम. सेक्स अम्मा,
अर्थात् दिल्ली विश्वविद्यालय के युवा मन
के बहकाव तथा युवावय कि समस्याओं को सुलझाती एक ऐसी महिला का आविर्भाव जो कि निहायती
भेदभावपूर्ण तथा दकियानूसी प्रतीत होता है. यह महिला दक्षिण भारतीय मूल की है जो छात्र-छात्राओं
को इडली कहती है, हर प्रश्न के बाद ‘अइय्यो’ कहती है. छात्र-छात्राएं अपनी काम इच्छाएं
तथा काम वासनाएं और इससे जुड़े प्रश्न इनसे पूछते हैं और सेक्स अम्मा अपने अनुभव से
उनके हर प्रश्न का उत्तर देती हैं. एक शैक्षणिक संस्थान में ऐसी कृतियाँ दुखद है,
क्या भारतीय युवा अपनी काम इच्छाएं को लेकर इतने निराश, हताश तथा आतुर हैं कि
उन्हें इस तरह किसी जानकार की आवश्यक्ता पड़ रही है. इसका विरोधाभास यह भी है कि सेक्स
अम्मा इस वेबसाइट के सबसे प्रचलित तथा चर्चित कॉलम में से एक है, विश्वविदयालय की
गतिविधियों से वेबसाइट भले ही कुछ समय तक अवगत ना हो, परन्तु सेक्स अम्मा के
प्रश्न-उत्तर समय-समय पर अद्यतन हो ही जाते हैं.
A snapshot of Sex Amma Source: dubeat.com |
समस्या अम्मा के अस्तित्व से नहीं है, समस्या है इसके वैचारिक
शून्यता की. इसके पीछे संपादक मंडल का क्या लक्ष्य है यह तो वो ही जाने हैं. इससे
भारतीय समाज में किसी ज्ञान का संचार तो नहीं हो रहा है यह तय है. किसी घाव तथा
मवाद के रिश्ते की ही तरह का भाव विरेचन है यह सब कुछ. जो पहले हर कॉलेज के
कॉन्फेशन पेज पर दिखता था और विगत कई वर्षों से सेक्स अम्मा के कॉलम पर. दुःख इस
बात से है कि संस्था की मुख्य सम्पादक स्वयं को नारीवादी विमर्श की विचारक कहती
हैं और ऐसे में उनका प्रगतिवादी होना भी लाज़मी है. तो क्या एक महिला का ऐसा चित्रण
क्या उन्हें शोभा देता है और उस पर पूछे जाने वाले प्रश्न जिसमें महिलाओं को एक
खास स्थिति और संख्या से जोड़ कर रख छोड़ा है, क्या वो नारीवादी विमर्श से बाहर आता
है. पत्रकारिता तथा मनोरंजन में अंतर है, और विश्वविद्यालय जैसे जगह पर पत्रकारिता
वैचारिक कम्पन लाने के लिए होनी चाहिए काम इच्छाओं को प्रकट करने के लिए नहीं. मेरी
इस संस्था से कोई शिकायत नहीं है, परन्तु दिल्ली विश्वविद्यालय में फ्रेशेर
पार्टी, फरेवेल, तथा सेक्स अम्मा के अतिरिक्त बहुत कुछ है दिखाने को तथा संचारित
करने को. छात्र संघर्ष को प्रेरित करने की जगह पूंजीवादी उलझनों में उलझी ये
पत्रकारिता समाज और नारीवादी विमर्श के किसी काम नहीं आएगी. इस बात को मैं आपकी
चेतना पर नहीं छोड़ना चाहता, मैं आप सभी के साथ की अपेक्षा करता हूँ, ताकि समाज से
ऐसे गंद हटाए जाएँ, जो किसी महिला का ऐसा चित्रण करे, वो भी किस खास वर्ग, भाषा और
क्षेत्र से निकालकर. इसे बंद किया जाना चाहिए. यह आवश्यक है दिल्ली विश्वविद्यालय
में सामाजिक तथा शैक्षणिक चेतना लाने के लिए. काम-क्रोध-मोह क्या समाज में वैसे कम
है जो ऐसे पटल पर भी इसे बढ़ावा किया जा रहा है, समाज में इससे अच्छी कहानियाँ और
प्रश्न भी है ढूँढने का प्रयास तो कीजिये.
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