आँचल में आज़ादी: कहानी महिला सशक्तिकरण की
-
अंकित झा
(भाग-1)
“मेरा छोटा बेटा पहली कक्षा में था, जब उसके स्कूल में ‘अभिभावक-शिक्षक
घोष्ठी’ के दौरान उसकी शिक्षिका ने मुझसे कहा था कि मेरा बेटा पढ़ाई में थोड़ा कमजोर
है और खासकर गणित में. मैं घर पे उसे क्यों नहीं पढ़ाती हूँ? इससे पहले कि मैं कुछ
कह पाती, वो जोर से चिल्ला उठा ‘ये मुझे क्या पढ़ाएंगी, इन्हें खुद तो कुछ पढ़ना
आता नहीं. अनपढ़ हैं ये.” कहते हुए उसकी आँखें नम हो आई थी. उन्हें हौसला देते
हुये मैने उनसे पूछा, फिर क्या हुआ? “मैं क्या बोलती, क्या करती, किसी तरह
शर्मिंदगी को छुपाये बात ख़त्म करके घर लौट आई. रात भर सोंचती रही कि आखिर मुझे
बुरा किस बात का लगा है? इस बात का कि मैं अनपढ़ हूँ या ये एहसास मुझे मेरे छोटे
बेटे ने करवाया, वो भी अपनी शिक्षिका के सामने. अगर ये शर्मिंदगी अनपढ़ होने का है
तो उस्मिएँ शर्म कैसी? सत्य से शर्म कैसी? क्या ये सत्य इतना शर्मनाक है? अगर ये इतना
शर्मनाक है तो इसका बोझ जीवन भर कैसे उठ पायेगा मुझसे? बस यही सोंचती रही. कोई
रास्ता ही नहीं दिखता था, करीब 3 साल पहले उद्यम किसी वरदान की तरह आया. यहाँ आने के
बाद लगा वो शर्म इतनी शर्मनाक क्यों थी?”
समाज कार्य पढ़ने का सुखद अनुभव होता है लोगों के साथ उनके
मध्य रह कर काम करने का. पढ़ाई तो सभी करते हैं, हर जगह होती है, मोटी-मोटी
पुस्तकें सभी विषयों की भरी पड़ी हैं. इन पुस्तकों का भी अपना महत्त्व है परन्तु
लोगों के सतत उनके स्तर पर काम करे की चुनौती स्वयं में एक ऐसा अनुभव है जो हर
विधा के विद्यार्थियों के लेना चाहिए. हालाँकि समाज कार्य कोई परिदृश्य नहीं है और
ना ही ऐसी कोई विधा है. कई विषयों के संगम तथा समागम से निर्मित एक ऐसा सिद्धांत
है जिसके एक छोर पे मानव कल्याण का दर्शन है तो दुसरे सिरे पर सामजिक न्याय का
यथार्थ. और दोनों के मध्य हम ढूंढते हैं एक ऐसा प्रयोजन जो कि दोनों को मिला सके. समाज
कार्य मात्र दया अथवा करुणा का विषय नहीं है, अपितु, ये कतई भी करुना का विषय नहीं
है. समाज को कभी नम आँखों से नहीं समझा जा सकता है, इसे समझने के लिए अपनी आंसू पर
काबू रखना अति आवश्यक है.
कई बार आंसू व अनुभव के मध्य होती है परिस्थितियां जो कि एक
मनुष्य को समाज कार्य में विवश करती है मजबूत बनने के लिए. समाज कार्य के मुख्यतः
4 पद्धतियाँ होती हैं: केस वर्क, ग्रुप वर्क, कम्युनिटी वर्क, तथा रिसर्च. कोई भी
विषय अथवा विधा समाज कार्य से पृथक नहीं है, बस आवश्यकता है उसके सही जगह पर उपयोग
की. ऐसे में महत्वपूर्ण है नारीवादी विमर्श तथा समानुभूति को एक स्थान पर रखकर
देखने की. समाज कार्य में सहानुभूति से अधिक जोर समानुभूति पर दिया जाता है. यही
कारण है कि ये समाजशास्त्र और मानव विज्ञान से पृथक है. अपने फील्ड वर्क के दौरान मैंने
उद्यम ट्रस्ट की कुछ महिलाओं के साथ कार्य किया तथा और इसी दौरान उनकी कहानियों
तथा जीवन के विवरण ने अन्दर तक झकझोर दिया. इन कहानियों के मध्य छिपी संघर्ष के
जीवंत उदाहरण तथा विजय की बेजोड़ गाथा को एक ख़ास अंक में पिरोने का प्रयास है ये...
“आँचल में आज़ादी”
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