शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012


                                                        अपने काम की चीज़
                                                                                                   - अंकित झा
अभी घर गया था छुट्टियो में. सब दिनचर्या वाही थी परंतु एक आदत बदल गयी थी. हमारे युग में यहा एक अंग्रेजी दैनिक आता था जो कि अब हिन्दी से प्रतिस्थापित हो गयी है. पहले लगा की दुनिया चंद पर पहुँच जाएगी उस दीं भी ये गोबर ही पातेंगे. हट! अच्छा भला आदत बिगड़ जाएगा. लेकिन यहा तो नज़ारा ही बदल गया है, सब जागरूक हो गये हैं, पिताजी दरवाज़े से अखबार उठाकर लाएंगे और अपना मनपसंद 'हरदा पृष्ठ' या 'नर्मडांचल' निकालकर पढ़ने लगते हैं. उधर से हमारे खिलाड़ी भाई साहब आएंगे और 'खेल पृष्ता' नोंच लेंगे, उधर से च्छोटी दीदी आएँगी और पूरा अखबार उठा लेंगी लेकिन आश्चर्य हुआ माताजी को देखकर  व्यापार पेज उठाया , मैने कहा ये क्या हो गया माँ को? हमारा कॉमर्स लेना इनको इतना पसंद नहीं था, फिर ये व्यापार पेज पर क्या पढ़ेंगी, मार्केट में तो रुचि है नहीं. सोने चांदी का भाव देखा, फिर उसके पिछले पृष्ठा पर राशिफल देखा, पिताजी का और भैया का और फिर मेरा भी देख ही लिया. मेरी और उनकी एक ही राशि है. पर इस अफरा तफरी में एक पृष्ठ अकेली रह गयी, बेचारी, उसको मैने उठा लिया, और पढ़ने लगा. ये वही पृष्ठा है जिस पर मैं हाथ साफ करना चाहता हू, अपने काम की चेज़ों मे ये पसंद आ गयी और अब सजाता रहता हू......

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