मंगलवार, 19 नवंबर 2019

चलते चलते

फ़ीस सिर्फ़ एक बहाना है
- अंकित झा 
इस समाज में किसी लड़की पर सबसे बड़ा लांछन किस बात का लग सकता है? यही ना कि उसका आचरण ठीक नहीं है। कपड़े छोटे पहनती है, सिगरेट शराब पीती है, लड़कों के साथ घूमती है और शायद शादी से पहले शारीरिक संबंध बना चुकी है। यही न? और लड़कों के लिए?
* इस पोस्ट को आप कहीं जेंडर एंगल से ना देख लें।
पहले पढ़िए।
हाँ, और लड़कों को? यही कि इतना बड़ा हो गया कमाता नहीं है, नशा करता है, बड़ा बेटा है और फिर भी खाली बाप से पैसे मंगवाता रहता है। लेकिन दोनों के ऊपर संयुक्त रूप से यदि एक कुपढ़ समाज में लांछन लगेगा तो यह लगेगा कि ये लोग पढ़ाई लिखाई के नाम पे खाली गन्द मचा रहा है। ज्यादा लिबरल हो गए हैं। यही सब न?
हम सब ने इतने वर्षों से मिलकर एक कुपढ़ समाज बनाया है। वो समाज जिसके पढ़ने का भी कोई अर्थ निकला नहीं। यही स्थिति तो है वर्ना अपने हॉस्टल में बढ़े फीस के विरुद्ध आवाज उठा रहे छात्र-छात्राओं के विरुद्ध ही कोई क्यों बोलेगा?
इसलिए कि वो लोग देशद्रोही हैं?
उस संस्थान में पढ़ने वाले कितने छात्र-छात्रा बैंक से लोन लेकर विदेश भाग गए हैं?
कितने छात्र-छात्राओं ने झुंड बनाकर किसी एक व्यक्ति को जान से मार दिया है?
कितने छात्र-छात्राओं ने एक दुर्घटना में मृत व्यक्तियों की चिता की झांकी बनाकर शहर भर में घुमाया है?
कितने छात्र-छात्राओं ने 50 दिन में बदलाव ना हो तो चौराहे पर लटका देना बोलकर सैकड़ों की जान ली हो सिर्फ अपने हिस्से का पैसा निकालने में?
कितने छात्र छात्राओं ने 1 के बदले 10 मारने की खुली चुनौती दी है?
कितने छात्र छात्राओं ने 15 मिनट के लिए पुलिस हटाने की धमकी दी है?
कितने छात्र छात्राओं पर शारीरिक शोषण, यौन शोषण, हत्या, दंगे के आरोप हैं?
कितने? कोई संख्या है?
क्या आपको पता है बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के हॉस्टल का फीस कितना है? 3000 रुपये सालाना। मतलब? 250 रु महीने। क्या बोलेंगे पंडे एक बारे चंदन लगाने का ले लेते हैं। और हाँ नार्थ ईस्ट हिल विश्वविद्यालय का? 1800 रु सालाना। मतलब? 150 रु महीने। बोलेंगे इससे ज्यादा तो गुवाहाटी से शिलांग आने में लग जाते हैं। लगभग सभी केंद्रीय विश्वविद्यालय में फीस ऐसी ही होती है। क्या यह भी बताने की आवश्यकता है कि शिक्षा किसी भी सरकार का एक मुख्य कर्तव्य है। ये मोदु बाबू कुछ खास नहीं है जिनपर दवाब पड़ रहा हो।
फीस और देशद्रोह जैसे मुद्दों की आर में अपनी वैचारिक मतभेद का रोटी सेंकना बन्द करें। ये देश संघ का नहीं है। संघ से पहले भी देश था, संघ के बाद भी देश रहेगा और संघ के दौरान भी देश है। ये देश संघ को चुनौती वाला देश है। वैचारिक मतभेद का सम्मान करना सीखिए, वैचारिक मतभेद पर घुसपैठ करना इस देश में परंपरा रही है। वो परंपरा आपको मुबारक। इस देश में अपने विचार की रक्षा के लिए वर्षों बलिदान भी दिया गया है, अपनी स्वायत्ता की रक्षा के लिए देश वर्षों लड़ा है। आगे भी लड़ेगा। आज जे एन यू। कल कोई और। फिर कोई और। यूँ ही चलता रहेगा।
लेकिन आज तो जे एन यू जीतेगा। ये तय है।
ज़िन्दाबाद।।

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