क्या नाम दूं इस कहानी को
- अंकित झा
सावन एक उपहार है, स्त्री के विराट स्वरुप को. सावन का अर्थ है, प्रेम व श्रृंगार का महिना. सावन ही तो मास है, जब अप्सराएँ भी नृत्य कर्ट हुई भूमि पर उतर आती हैं, और धरती के कण कण में अपनी सुन्दरता की छाप छोड़ जाती हैं.
मौसम काफी अच्छा हो रहा है. सुबह से ही धूप बादलों संग आँखमिचौली कर रहा है, घटाएं रह रह कर अंगराई ले रही हैं, हवा के झोंके पायल की धून पर नृत्य कर रही हैं, समूचे वातावरण में जैसे कोई संगीत बज रहा हो. आज के ऐसे मौसम में किसी समस्या पर लिखने को दिल नहीं मान रहा है. सोंच रहा हूँ कुछ अच्छा अच्छा लिखा जाये. आज रूप-श्रृंगार की मादकता में लिप्त शायर बन जाने का मन कर रहा है, किसी पहलु में बैठकर सौन्दर्य का रसपान करने को दिल कर रहा है. चोरी-छुपे ही सही किसी के अंतर्मन में जा कर उसके विचारों से एक पुष्पमाला बनाने को दिल कर रहा है. बरसात और है क्या, किसी प्रेमी के उसकी प्रेमिका के हेतु सन्देश. यक्ष और यामिनी की अमरगाथा, मेघदूतम. बस कुछ दिन और, सावन आने को है. सावन धरती के उबटन श्रृंगार का समय, जब वसुधा के रूप को सींचा जाता है, हर ओर प्रेम ही महकता है, हवाओं की थिरकन से लेकर, वातावरण के यौवन तक तथा स्त्री के रूप से समां के मासूमियत के मधुपान का समय. सावन अर्थात स्त्री के रुपार्थ का चित्रण, स्त्री क्या है, स्वच्छंद वायु का एक झोंका, किसी नदी की अविरल जल प्रवाह, किसी कवि के कलम के स्वप्नलोक की शहज़ादी. जैसा कि लेखक लिखा करते हैं, स्त्री ईश्वर के पहले सुखनिद्रा में छोड़ी गयी निःश्वास है, बस उस श्वास एक शरीर मिल गया है. और शरीर की बनावट भी ऐसी कि अपने कला पर ईश्वर इतराते न ठहरते हैं. किसी बोलने वाली गुडिया की तरह, किसी हंस सकने वाली पुष्प की तरह, किसी दौड़ सकने वाली सागर की तरह, स्नेह जता सकने वाले गगन की तरह, ममतामयी वृक्ष की तरह, जीने की वजह देने वाले सुधा की तरह, अपने यौवन से तड़पाने वाले हलाहल की तरह तथा आलिंगन कर सकने वाली संगीत की तरह. तसवुर में नित्य गाये जाने वाले ग़ज़ल की तरह स्त्री भी मानव मन की सर्वश्रेष्ठ कृति है. सावन एक उपहार है, स्त्री के विराट स्वरुप को. सावन का अर्थ है, प्रेम व श्रृंगार का महिना. सावन ही तो मास है, जब अप्सराएँ भी नृत्य कर्ट हुई भूमि पर उतर आती हैं, और धरती के कण कण में अपनी सुन्दरता की छाप छोड़ जाती हैं.
आज मन कर रहा है, प्रेम की कल्पना के गीत गाने को. अपने जीवन के कुछ मासूम कहानियों को शब्द देने का. दुनिया कहती है कि प्रेम का आनंद या तो उर्दू में है या अंग्रेज़ी में. अंग्रेज़ी में कल्पनाओं की कीमत होती है तो उर्दू में कल्पनाओं को शब्द देने की अद्भुत क्षमता. परन्तु परम सत्य तो ये है कि प्रेम का आनंद ख़ामोशी में है, जब कोई कुछ न कहे, सिर्फ आँखों और धडकनों पे छोड़ दे. भावनाओं के संचार को. वो समय कुछ ऐसा होता है जब सब कुछ थम सा जाये व प्रेमी की आँखें कहती रहे व प्रेमिका की आँखें सुनती रहें, बाकी समूचा वातावरण मौन रहे बस उनके ह्रदय के गति को सुनता रहे. वो गति जो कभी बढ़ रही है, कभी कम हो रही है, कभी उतावली हुए जा रही है, कभी बावली हुए जा रही है. समय जो रसपान कर रहा है, जो इतरा रहा है अपनी खुशकिस्मती पर. संसार जो कहीं विलुप्त हो गया है मंच से, सिर्फ दो बचे हैं, नम आँखें, झुकी हुई पलकें, शांत लब, तथा धडकते दिल. दुनिया में ऐसा कोई नहीं जिसका दिल कभी किसी के लिए धड़का न हो. मेरे मित्र कहते हैं, जब आँखों में किसी के लिए प्रेम उमड़ आता है तो दोनों की आँखें एक दुसरे की जैसी हो जाती है. इस बात की सत्ययता के कोई प्रमाण मेरे पास नहीं है. लेकिन इतना अवश्य है कि प्रेमिका की एक नज़र से मौसम गुलज़ार हो जाया करते हैं. अब मैं कौन होता हूँ प्रेम की परिभाषा देने वाला, गरीबी और भ्रष्टाचार पे तो लम्बा संभाषण दे सकते हैं परन्तु प्रेम पे संज्ञान. असंभव. खैर, प्रयास करने में क्या बुराई है. अब मेरे किस्सागोई मस्तिष्क में भूओचल आ रहा है, चलिए अपने जीवन के कुछ मासूम घटनाओं को शब्द देने का प्रयास करता हूँ, हो सकता है आप इसे प्रेम समझें परन्तु मैं तो इसे घटनाएँ ही मानता हूँ.
वर्षों पहले की बात है, उस समय मेरा घर मध्यप्रदेश के छोटे से शहर हरदा के श्यामानगर इलाके में हुआ करता था. था, की कहानी विस्तार से कभी बताऊंगा. खैर, सवेरे-सवेरे मेरी सवारी स्कूल की तरफ जाती थी. स्कूल भी हद दूर, घर से 3-4 किलोमीटर दूर. और सड़क ऐसी की कूल्हे टूट जाया करते थे मैं रोड आते आते. मैं रोड से पहले ही उसका घर आता था, सुबह के समय जब मैं स्कूल जाया करता था, वो अपने घर के बाहर पानी भर रही होती थी, एक सीधी सादी घरेलु लड़की. जिसके ज़िन्दगी से अपने कुछ सवाल होंगे, जिसके अपने कुछ अरमान होंगे, कुछ सपनें जिसे वो पूरा करना चाहती होगी. स्कूल जाते समय रोज़ उससे आँखें मिल जाया करती थी, सिर्फ आँखें मिलती, कभी बात नहीं हुई उससे. पर वो कहते हैं न, भावनाएं आँखों के माध्यम से संचारित होती हैं, आँखों से ही मैं उसे नमस्त कहा करता. वो भी उसका जवाब आँखों से ही दे दिया करती. करीब 5-6 महीनों तक ये नमस्ते का दौर चला होगा. बस ये बात नमस्ते की ही नहीं थी, ये कुछ और भी था, जिस भी दिन बिल्ली रास्ता काट देती थी, मुझे आते देख मुझसे पहले मेरे लिए रास्ता साफ़ कर देती. अब इसे क्या कहेंगे मुझे पता नहीं. मुझसे काफी बड़ी थी, हर लिहाज़ से. फिर वो घर भी छोड़ना पड़ा और वो रास्ते भी. अब वही स्कूल था, पर उतनी दूरी नहीं थी. कम दूरी में किसी के नमस्ते की प्रतीक्षा करती मेरी आँखें थक चुकी थी. तब समझ में आया कि कवि गलत नहीं कहा करते हैं, 'इश्क का मज़ा तो गफ़लत में है, यार की बाँहों में जो बीते वो शाम कैसी'.
कहानी उस समय की है जब इटारसी स्टेशन पर मैं घंटों ट्रेन की प्रतीक्षा में बैठा रहता. ट्रेन घंटों देरी से आती थी, कुछ करने को नहीं होता था, किताबें ही पढ़ा करता, और किताबें भी ऐसी कि ऊब के अलावा और कुछ नहीं देती, उसी दौर में सचिन गर्ग और रविंदर सिंह की गप्पों वाली प्रेम कहानी की किताबें पढ़ी थीं, साहित्य के नाम पर शर्म. ऐसे ही एक दिन, रविंदर सिंह की 'कैन लव हैपन ट्वाइस' पढ़ रहा था, बेल्जियम में दो भारतीयों की प्रेम कहानी चल रही थी, ट्रुथ एंड डेयर का खेल. तभी अचानक एक आवाज़ मेरी बायीं ओर से आई, इसकी फर्स्ट इन्सटॉलमेंट कितनी इमोशनल है ना? मेरी तो आंसू आ गयी थी. मुझे नहीं लगा था कि आधुनिक 150 रु. वाले लेखक भी पाठकों के आंसू निकाल सकते हैं. मैं उस आवाज़ की तरफ मुड़ा, अपनी आँखों पर एक पल आश्चर्य हुआ कि आखिर मैं देख क्या रहा हूँ. खैर अपनी आँखों को समझा कर मैंने कहा- हो सकता है, लेकिन ऐसे लिटरेचर पढ़कर मेरे आँसू तो निकलते हैं. ह्म्म्म, मतलब आप बड़े स्ट्रिक्ट रीडर हो? उससे ऐसे ही बात चलती रही, बातों बातों में परिचय हो गया, झाँसी जाना था उसे. मौसी के यहाँ इटारसी आई थी, इसी साल ग्वालियर के आईआईआईटीएम् से ग्रेजुएशन किया है. अब मेरी समझ में ये नहीं आ रहा था कि हमारी बात क्यों हो रही है? पर वो होती रही, ट्रेन के आने तक, दोनों की ट्रेन भी एक ही थी. पर सीट अलग अलग थी. उस ट्रेन से कई सुखद यादें जुडी हैं. उन यादों को पुनः जीना तो चाहता तो हूँ, पर जब से घर बदला है नॉएडा में, इतनी दूर सराय रोहिल्ला जाने का दिल नहीं करता. बस वो याद बहुत आती है कभी कभी, उसका वर्णन कभी फुर्सत में करूँगा. काफी मजेदार बातें की थी उसने. एक और मासूम रिश्ता, जो बनने से पूर्व ही खंडित हो गया. वो शायर बड़े गुमान से कहा करते हैं न, 'इश्क तो वो मंजिल है जहां हसरतें अधूरी रह जाएँ, जहाँ जीत मिल जाए उसे तो खेल कहते हैं'.
कई और कहानियां हैं अंतस में. घटनाएँ जिसने लेखक बनने पर विवश कर दिया, वो पात्र जो मुझे ऐसे मिले जैसे कथा स्वतः ही मुझसे मिलने को आयी हो. हर सफ़र में मुझे कई ऐसे पात्र मिले हैं जिनका मेरे जीवन पर प्रभाव है, फिर वो मेट्रो का अनाद्मायी सफ़र हो या फिर बस का ऊबा देने वाला सफ़र या ट्रेन का अंतहीन सफ़र. मेरी आँखें सदैव एक कहानी ढूँढती है, जीवन के इस आपाधापी में सच्चे प्रेम को ढूँढती है. वो प्रेम जो किसी बरसात में छाते के नीचे होता है, कॉलेज से बस स्टॉप जाने के दरम्याँ, तेज़ बारिश में तेज़ चलने वाली सांसें. उन सांसों में होने वाली बात जो सिर्फ सच कहा करती हैं. इस प्रेम में मैंने दर्द को शामिल नहीं किया, मोहब्बत में कोई मंजिल नहीं हुआ करती है. यहाँ केवल रास्तें हैं, जहां कुछ भी निश्चित नहीं है. तभी तो इसे प्रेम कहते हैं, जहां विवशता भी स्वप्न का रूप धारण कर लेती है. सावन आगमन पर प्रेम की पराकाष्ठ को मेरा प्रणाम, आशा है मेरी कलम कई अफ़साने और रचेगी, परन्तु प्रेम में सामाजिक समस्याओं का समावेश, प्रेम को अमर कर देता है. और जो अमर हो जाए वही प्रेम होता है.
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