सोमवार, 10 मार्च 2014

Movie Review

आधुनिकता व यथार्थ के रस से बनी है 'क्वीन' 
                                          - अंकित झा 

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर दो फिल्में रिलीज़ हुईं, दोनों ही महिला केन्द्रित तथा दोनों ही छोटी बजट की बड़ी अपेक्षाओं वाली फिल्में. आज के दौर में जब हर ओर स्त्री विमर्श का बोलबाला है, उस समय ऐसे मौके पर फिल्म के रिलीज़ होने का अर्थ है, मुनाफा. मैं भी किसी एक फिल्म को देखना चाहता था, एक ओर समकालीन शीर्ष अभिनेत्री रह चुकी दो महाभिनेत्रियाँ(माधुरी दीक्षित तथा जूही चावला) थी तो दूसरी ओर नित्य संघर्षरत नई त्रासदी साम्राज्ञी बनने जा रही अभिनेत्री (कंगना रानौत). एक ओर शीर्ष कलाकारों से अलंकृत फूहड़ संवादों वाली यथार्थ के करीब वाली काल्पनिक कहानी थी तो दूसरी ओर निम्न ही सही परन्तु अध्ययनरत कलाकार के परिश्रम का परिणाम. एक ओर वो फिल्म थी जिसके मुख्य कलाकार की पिछली फिल्म मेरे सर्वकालीन पसंदीदा फिल्मों में शुमार है तो दूसरी ओर के फिल्म के कलाकार की पिछली फिल्म को मैं जल्द से जल्द भूल जाना चाहता हूँ, रज्जो तथा कृष3. फिर ऐसा क्या था जो मुझे गुलाब गैंग की जगह क्वीन देखने को जी चाहा? उत्तर तय है, फिल्म का ट्रेलर, संगीत तथा निर्माण से जुड़े लोग; अनुराग कश्यप, विक्रमादित्य मोटवाने, अन्वित्ता दत्त, अमित त्रिवेदी तथा विकास बहल जैसे लोगों का नाम जिस फिल्म से जुड़ा हो उसे यूँ ही तो नहीं जाने देना चाहिए. उस पर से कंगना रानौत की विलक्षण प्रतिभा को दर्शाता मनमोहक ट्रेलर.
अमित त्रिवेदी का संगीत तथा लभ जुनेजा की आवाज से अलंकृत गीत से फिल्म की शुरुआत तथा गीत के ठीक बाद आने वाले मोड़ और कहानी का नित्य बढ़ते रहना. फिल्म एक अद्भुत यात्रा है, मनुष्य का स्वयं में विश्वास तथा स्वयं के साथ सहवास का. साथ ही साथ यह एक कटाक्ष है, हमारे समाज पर जहां आज भी कहीं न कहीं मायेके की गुडिया बनाकर ही बेटियों को खुश कर दिया जाता है, जो कि फिल्म के एक गीत की पंक्तियाँ ज़ाहिर करती हैं, “बाबुल के अंगना में, अमवा के तले, मैहर की दुलारी नाजों से पले”. फिल्म की मुख्य पात्र ‘रानी’(कंगना) एक छोटे से कॉलेज से गृह विज्ञान पढ़ रही है, कॉलेज किस क्षेत्र में है यह भी वो ठीक ठीक नहीं जानती, पूछने पर वह पूरा पता बता देती है, परन्तु जगह नहीं बता पाती. किसी के इज़हार-ए-इश्क का उत्तर देना भी नहीं जानती, i love you का उत्तर वो धन्यवाद कह कर देती है. विदेश जाने पर अपना पता वो दिल्ली नहीं राजौरी बताती है. राजौरी गार्डन से उठकर पेरिस व अम्स्तेर्द्रेम का सफ़र मनमोहक व संघर्षपूर्ण है. एक लड़की जिसे शादी के २ दिन पहले लड़का केहता है, वो उससे शादी नहीं कर सकता, कारण नहीं बताता. कारण साफ़ है कि लड़की उसके ओहदे से मेल नहीं खाती. समाज भी तो दुष्ट है, भोलेपन को बेवकूफी समझ लेता है. विजय(राजकुमार) के संग अपने सपने सजा चुकी रानी, ये सुनते ही बिखर सी जाती है. परन्तु बहुत जल्द वो खुद को संभालती है व फिर शुरू होती है एक अद्भुत यात्रा. रानी परिवार से अनुमति लेकर निकल जाती है, अपने सपनों के शहर पेरिस के लिए, अपने हनीमून पर, अकेले.
अजनबी शहर, नए लोग, अनजान भाषा, अलग संस्कृति तथा चिंता व कुंठा. रानी परेशान हो जाती है. एक-एक सपनों को वो अपने सामने टूटते हुए देखती है. परन्तु परदेस में उसे किसी अपने की तलाश समाप्त होती है, जब उसकी मुलाकात होती है, विजय लक्ष्मी(लिसा) से. लक्ष्मी के साथ रानी की मित्रता उसे नए राह पर ले जाती है, जहां वो अपने लज्जा से मुक्त होती है, खुलने को दिल करता है, तो hindi गानों पर थिरकने को विवश हो जाती है, और फिर पूरे क्लब को नचा देती है. कभी शराब पीकर अपने दिल की व्यथा लोगों से कहती है. फिर उसका ये कहना कि हमारे यहाँ तो लड़कियों को डकार करना अलाव ही नहीं है, वहाँ पर तो बहुत कुछ अलाव नहीं है. यहाँ पर तो सब कुछ कर सकती हैं, झकझोरता है. और स्त्रिविमार्षकों के दिल में चिंगारी लगता है. कभी घर से अकेले भी नहीं निकलने वाली परदेस में 3 अजनबी विदेशी लड़कों के साथ एक ही कमरे में रहती है. एक जापान से है, एक रूस से तो एक फ्रांस से. चारों अम्स्तेर्द्रेम की गलियों को नापते हैं व अपने जिंदगी को खुशियों से भर लेना चाहते हैं. सभी की अपनी व्यथाएं हैं जो कहानी को बल प्रदान करता है, जापानी लड़के के हंसी के पीछे छुपी है, २०१२ में आये सुनामी में अपने मात-पिता को खोने का दर्द, तो ओलेक्जंदर की ख़ामोशी व गुमनाम कलाकारी के पीछे किसी क्रांति के निमंत्रण की चेष्टा है. सभी एक दुसरे की ख़ुशी में हँसते हैं, सभी छिपकली से डरते हैं, सभी एक दुसरे के लिए रोते हैं, भावनाओं की इस उतार चढाव के बीच हम अपने आप को उनके बीच पाते है. फिल्म को इतनी सुन्दरता से नियंत्रित किया गया है कि यह कागिन भी बनावटी नहीं लगती. गोलगप्पा खा कर मुंह जलना हो या मछली के आँख निकलने पर डरना और इफेल टावर से घबरा कर भागना, हर चीज यथार्थ के करीब ही लगती है. मानवीय मुस्कान के पीछे छुपे दर्द को ज़ाहिर करती दो लड़कियां जो रानी की जिंदगी में स्वतः ही आती हैं व उसके जिंदगी का हिस्सा बन जाती हैं. लक्ष्मी का खुलापन रानी को अटपटा अवश्य लगता है परन्तु वो उसे स्वीकार करती है, वहीँ हॉलैंड में रुखसार का एक सेक्सवर्कर के रूप में कार्य करना उसे पसंद नहीं हैं परन्तु उससे भी अपनापन जता जाती है. ये सब किरदार हमें सोंचने पर मजबूर करती हैं तो कुछ दृश्य हमें खिलखिलाने के लिए विवश कर देते हैं.
यह एक लाजवाब फिल्म है, भावनाओं के उतार चढाव को काफी कुशलता से निर्देशक ने सजाया है, जिससे ये फिल्म याद रखने लायक बन जाती है, साथ साथ चलने वाला अमित त्रिवेदी के संगीत का जादू. नज़र व कान दोनों ही हटाने को जी नहीं करता. कहानी, संगीत व निर्देशन से भी अधिक यदि यह फिल्म याद रखी जायेगी तो वो है, कंगना रानौत के शानदार अभिनय के लिए. कंगना ने रानी को परदे पर जीवंत कर दिया. कुछ कुछ दृश्यों में उनके चेहरे के भाव को इतनी सुन्दरता से बदलते देखा कि लगा मनो यह फिल्म कोई और नहीं कर सकता. चोर से भिड़ने का दृश्य हो या hindi गाने पर आँखों में आंसू आने के बावजूद झूम उठने को तैयार होना, इतनी ख़ूबसूरत अदायगी है कि शब्द नहीं है बयां कर पाने को. लिसा व राजकुमार भी अपने चरित्र को बखूबी निभाते हैं तथा विदेशी कलाकार भी अपने चरित्र के साथ इन्साफ करते हैं.
यह एक और इंग्लिश विन्ग्लिश है, शायद उससे अधिक सार्थक तथा नवीन. कुछ आधुनिकता से भरी व कुछ युवापन से जुडी. यहाँ अंतर्वस्त्र से खेल है, तो वहीँ विजयलक्ष्मी पर रानी के पिता व भाई की नज़र. कुछ दृश्य गुदगुदाते हैं, कुछ भावुक कर देते हैं, कुछ आँखें चुराने को भी मजबूर करते हैं खासकर पेरिस में लक्ष्मी व रानी के बीच के कुछ दृश्य. परन्तु यह सब कतई अश्लील नहीं लगता, फिल्म है फिल्म के प्रभाव में यह बहते चले जाते हैं. ऐसी और भी फिल्में बनेंगी और बनी भी है परन्तु इसे कतई भी किसी के साथ तुलना न किया जाये वरना इसकी मार्मिकता मर जाएगी और इसका दोष भी समाज पर ही आयेगा.
क्वीन आपके दिलों पे राज कर लेगी, देखने जरुर जाएँ.  

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