क्या विवाह-पूर्व संबंध अनैतिक है?
- अंकित झा
किस ओर बढ़ रहे हैं हम, जिस ओर प्रगति नही है।
जिस ओर जिज्ञासा नहीं है, जिस ओर कुंठा ही कुंठा है।
जिस ओर प्रणय है, जिस ओर खिलाफत है,
किस ओर बढ़ रहे हैं हम, जिस ओर प्रगति नही है।
जिस ओर जिज्ञासा नहीं है, जिस ओर कुंठा ही कुंठा है।
जिस ओर प्रणय है, जिस ओर खिलाफत है,
जिस ओर समाज नहीं है, समाज का डर व्याप्त है।।
- अंकित झा
- अंकित झा
शादी है, क्या है कोई लाइसेंस है क्या? आवश्यकता क्या है? परंपरा है, जो चली आ रही है, चलती जानी चाहिए। ये विवाह पूर्व सम्बन्ध क्या हो गये, कोई नयी बीमारी है क्या? या अंग्रेजी गंद है कोई? हिंदी में तो शब्द की आत्मा ही मर रही है, नाम है, प्री-मैरिटल सेक्स। परन्तु जैसे जैसे हिन्द में इसका पैठ बढ़ रहा है, इसे दरकिनार नहीं किया जा सकता। अर्थात ये अंग्रेजी गंद ही है। कौन कहता है, हर मुद्दे को उस गली नहीं धकेल सकते हैं, वरदान ही सही परन्तु महाभारत में कुंती को विवाह से पूर्व कर्ण हुआ था, हाँ अपनी कोख से नहीं परन्तु महाकाव्य के अलंकरण को हम क्या समझने गए, समाज के डर से गंगा में प्रवाहित कर दिया, अपने अंश को, सूर्य के आशीर्वाद को, समाज के साख बचने के लिए ममता का गला घोंट दिया तथा समूची ज़िंदगी कचोट में रही।
भारत के विषय में बात करते हैं तो हिन्दू ही प्रासंगिक है, हिन्दू इतिहास की बात हो तथा महाभारत छूट जाये, सम्भव नहीं। परन्तु ये बात महाभारत के प्रारम्भ की है, सम्राट भरत के पिता दुष्यंत व माता शकुंतला की अमर प्रेम कथा। जंगल में दोनों का मधुर मिलन परन्तु समाज के नज़र से दूर, दुष्यंत अब तक अविवाहित, शकुंतला तो महर्षि की पुत्री, कोई जीजिविषा नहीं, कोई आकांक्षाये नहीं, सिर्फ प्रेम और प्रेम। शापित हुई और दुष्यंत ने पहचानने से मन कर दिया, परन्तु गर्भवती, कोख में कुरु वंश का युवराज, भरत। ये गाथा तो भारत की ही है, पूर्णतः, विवाह पूर्व यौन समबन्ध की। उस समय तेज़ अलग थे, समय अलग था। कुछ भी चल सकता था, सामाजिक बंदिशे आज से कई ज्यादा थी। अब तो हम बदल रहे हैं, फिर क्या आवश्यकता है उन बंदिशों की? बंदिशें नहीं, हालत कहते हैं उन्हें। विज्ञानं कहता है कि १३ वर्ष से एक बालिका में शारीरिक परिवर्तन शुरू होते हैं तथा १५ वर्ष से एक बालक में। पहले इस उम्र तक विवाह हो जाया करते थे, परिणय व प्रणय में उम्र का अंतर बहुत कम था, उस समय ऐसा समाज भी हमने नही बनाया था, जहाँ निर्लज्ज्ता परोसी जाती हो। आज तो सीमान्त पर खड़े हैं हम, निर्लज्ज्ता के, फिल्मों से लेकर मैगज़ीन और इंटरनेट पूरा खुला संसार बना बैठा है गंद का और मानवीय विकृतियों का। परन्तु मानवीय संवेदनाएं कभी भी किसी साधन का मोहताज़ नहीं रहा, ययाति को ही ले लीजिये, पत्नी के होते हुए भी, दासी से अंतरंग सम्बन्ध व उससे कुछ चिराग भी। भारतीय इतिहास ऐसी कई किवदंतियों से भरा पड़ा है, तय हमें करना है कि हम किसके पक्ष में हैं? पक्ष-विपक्ष का ढोंग बहुत पुराना है, कितनी ही बार माशूक मोहल्ले में धोखे खा चुका इंसान किसे पक्ष और किसे विपक्ष समझे समझ ही नही आता। मनुष्य इतना अपाकृतिक क्यों होता जा रहा है, खुले विचारों के नाम पर, पहले समलैंगिकता, फिर सहचारिता (लिव-इन रिलेशनशिप) और ये नया बिगुल पूर्व विवाह यौन सम्बन्ध। मनुष्य पर है, उसका अपना विवेक अपना विश्वास और अपनी विवेचना। एक बात तो साफ़ है कि गंदगी पर थूक कर तो साफ़ नहीं किया जा सकता उसे, पवित्रता का जल ही छिरकना होगा उस पर। वो क्या हो सकता है, ऐसे कृत्यों पर रोक लगाना, वो तो सरकार कर चुकी है, १८ वर्ष से पूर्व लड़की का विवाह नही हो सकता परन्तु सम्बन्ध के बारे में अब तक कोई फैसला नही आया, मद्रास हाई कोर्ट ने ही एक फरमान सुनाया था, कुछ कुछ दिलीप कुमार अभिनीत, व मेहबूब खान निर्देशित 'अमर' की तरह। विवाह से पूर्व यदि कोई युगल यौन सम्बन्ध बनाता है तो उसे विवाहित माना जाये, परन्तु उतनी ही जल्दी इस फैसले को वापस ले लिया गया। संस्कृति की बखान का प्रश्न नही है परन्तु प्रश्न यह है कि मानवीय संवेदना इस पर क्या राय रखती है? क्या मनुष्य का ज़मीर उसे अन्य स्त्री या पर पुरुष के साथ अंतरंग सम्बन्ध बनाने की इजाज़त देती है? क्या ज़मीर प्रणय को परिणय के ऊपर रखने की गवाही देती है? यदि हां तो, कोई और प्रश्न नही, सीधे शब्दों में समाज पर मॉडर्न हो जाने की बात कह देना सुगम होगा।
1 टिप्पणी:
Ya toh bhai desh m 17-18 saal m shaadi kr do ya phir live in relationship m koi appati nahi honi chaiye kyon k sharir m badlav toh 15 varsh k umr m aane lagta h aur agar in do baato m se ek na ho toh vaishyakrti ya dushkarm k raaste pr chl pdta h ugal.
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