चुनौती
- अंकित झा
क्या कह दोगे कुर्सी पर बैठकर,
कहने को कभी धरातल पर आओ।
क्या लूट लोगे हरियाली तुम कानन की,
कभी लूटने को मरुस्थल में आओ।
पग-पग पर जब जग हंसेगा,
त्राहि-त्राहि से करते फिरोगे।
मूक मानव कह उठेगा,
कभी तो कुछ करके दिखाओ।
खूब दागे तोप तुमने शान में अपने,
किलकारियों को सुनने का समय नहीं।
कर लिए चंद वर्ष में पूरे वो सपने,
कभी हमरे सपने पूरे करके दिखाओ।
कहते हो स्वयं को सम्राट तुम,
हो सरल, अविरल, विरत ह्रदय के।
खूब नेता बनाने की चाहत लिए हो,
कभी तो तुम मनुष्य बनके दिखाओ।।।
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