शुक्रवार, 10 जनवरी 2020

संक्षिप्त मूवी रिव्यू

"छपाक", भारतीय सिनेमा इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण फिल्मों में से एक है। यह सिनेमा जगत में हुई एक ऐसी सुखद घटना है जिसके समक्ष पुरुषवादी विचारों से भरे इस समाज को नतमस्तक होना चाहिए।
मुझे इस बात का हमेशा अफसोस रहा कि यौन शोषण व यौन हिंसा जैसे जघन्य अपराध को भारतीय फिल्मों में बदला लेने व कहानी को एक नया मोड़ देने के लिए किया जाता रहा। जिससे इस अपराध की संवेदनशीलता समाप्त होती गयी, और यह स्थापित कर दिया गया कि स्त्री पर यौन हिंसा के बाद एक पुरुष आएगा जो अपराधी से बदला लेगा। यहीं सिनेमा कहीं स्त्री को हार चुका था। लेकिन छपाक वो फ़िल्म नहीं है। यहां स्त्री पर फेंके गए तेज़ाब के बाद पुरुष दूसरे पुरुष के ऊपर तेज़ाब फेंककर या उसका गला काटकर खत्म नहीं करता। यहां स्त्री है जो कहना जानती है, फैसले लेना जानती है, आवाज़ को रखना जानती है।
यह फ़िल्म दीपिका पादुकोण, विक्रांत मेसी या मेघना गुलज़ार नहीं है। यह फ़िल्म एक संघर्ष की तरह है। दिल को झकझोरने वाला, आंखों को भींगो देने वाला, सांस को रोक देने वाला।
धन्यवाद मेघना यह फ़िल्म देने के लिए।
(कुछ अखंड इसके टैक्स फ्री होने का मज़ाक बनाएंगे, विरोध करेंगे। यह उनकी कुंसित मानसिकता दिखायेगी। ये वही लोग हैं जो तेलांगना में एनकाउंटर में मारे गए रेप के आरोपियों की मौत पर जश्न मना रहे थे। वो आज एसिड अटैक जैसे मुद्दे और एसिड सर्वाइवर पर बनी फिल्म का विरोध कर रहे हैं, उसमें धर्म खोज रहे हैं। ख़ैर, ये अपनी तरह के खत्म ही चुके लोग हैं। धिक्कार है। )
PS: फ़िल्म देखते समय आलोक दीक्षित जो लक्ष्मी के साथी हैं वो पीछे ही बैठे थे।
PSS: फ़िल्म में देशभक्त शिरोमणि अंजना ओम कश्यप भी एक भूमिका निभा रही हैं। भक्तों ज़रा इनका भी बॉयकॉट करना।
फ़िल्म से जुड़े सभी लोगों को क्रांतिकारी ज़िन्दाबाद।
मर्दानगी के सबसे घिनौने अतिवाद से जन्म लेने वाले अपराध से गुजरी सभी साथियों को बहुत सम्मान, हौसला और ज़िन्दाबाद।।

कोई टिप्पणी नहीं: