गुरुवार, 14 मार्च 2013

प्रतिबिम्ब

अथ यात्रा 
- मनीष पोसवाल 
मरू मन घूमता है जैसे,
मृगतृष्णा के भंवर में
उसी तरह मानव का मनोरथ
चलायमान है।
सत रज तम से निर्मित डगर में
इस रथ का प्रत्येक पहिया
भरा है भिन्न-भिन्न
भावों के भार से
तभी तो न्याय
नगण्य हो चुका है।
मत्स्य न्याय के शिकंजे में
तड़पते संसार से
इसी जीवन के विभिन्न पहलु
कभी चमकते हैं पीली धूप से
कभी करते हैं
जल की याचना।
तमसावृत्त अंधकूप से
शाश्वत सत्य ये भी है।
जीवन जड़ नहीं चेतन है,
स्थिर नहीं गतिमान है
सफ़र है ये सुन्दर संघर्षों का
पंचतत्व में सांसे
जब तक विद्यमान है
अंततः हम कह ही दे
की जीवन अथक यात्रा है।
सृजन का उत्सव है
नामानों का निरीक्षण है
पथरीले पथों का
आगामी अनुभव है।।।। 

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