बुधवार, 2 जून 2021

व्यंग्य में उमंग

चमगादड़

- अंकित नवआशा
मैंने टीवी में किसी चैनल पर
सिर के बल खड़े चमगादड़ को भी देखा है
बिल्कुल उल्टा।
वह रह रह कर
नई नई तरंगे छोड़ देता है,
उसको देख, उसके ही जैसे
हज़ारों इंसान भी चमगादड़ बने खड़े हैं
सिर के बल, उल्टा।
जैसे चमगादड़ों को दिखता-सुनता नहीं
सिर्फ तरंगे पकड़ते हैं
वैसे ही ये भीड़ सामने हो या
टीवी के इस पार
तरंगों को ही पकड़ती है,
देखने और सुनने की
ज़हमत नहीं उठाती।।

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