अंतिम कविता
-
अंकित झा
इससे पहले कि हम सदा के
लिए अलग हों,
तुम्हें सुनाना चाहता था कुछ
पंक्तियाँ
तुम्हारे लिए लिखी गयी
आखिरी कविता से.
जिस कविता में रख छोड़े हैं
मैंने
अपने सभी प्रश्न,
तुम्हारी गरिमा की रक्षा
करते हुए,
वो प्रश्न जो तुमसे पूछे
जाने थे
दूर जाने की वजह समेटे.
दूर क्या और क्या पास,
कुछ ऐसी गयी हो कि
हमेशा तुम्हें अपने पास ही
पाते हैं.
ऐसा भी क्या जाना.
इस कविता में मैंने ऐसे भी
कई प्रश्न किये हैं.
तुम ज़िद्दी बहुत हो,
मुझे कभी दुःख नहीं दे
सकती,
अतः मैं विदा लेता हूँ,
अपने सभी प्रश्नों के साथ,
और साथ में लिए वो कविता,
जिसमें बार-बार मैंने
तुम्हारी सुन्दरता
को नए उपमान दिए हैं.
मेरे लिए वो कविता एक
प्यास है,
और तुम पानी की समझ.
ये वही कविता है जिसे
लिखने से पूर्व,
गिरे थे मेरे आंसू
तुम्हारी हथेली पर,
और तुमने अंतिम बार,
छुआ था मुझे, पोंछने को
मेरे आंसू.
उस छुअन के हर एहसास को
समेटा है,
मैंने उस कविता में,
तुम्हारे डर को भी अंकित
किया है,
और समेटना चाहा है हमारे अधूरे
सपनों को,
वो सपने जो तुम्हारे या
मेरे नहीं थे.
अब विदा लेने का समय है,
तुमसे और तुम्हारी यादों
से,
ये कविता अवश्य पढ़ना,
और खुश रहना, जिसकी
तुम्हें आदत है.
हम यूँ ही प्रतीक्षा
करेंगे,
किसी एक के टूटने का,
यदि तुम्हारे अभिमान की ही
बात हो जाए
तो हमें एक बार बता देना,
हम ही क्षमा मांगते हैं...
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