जनसंख्या नियंत्रण क़ानून सिर्फ़ क़ानून नहीं बल्कि नफ़रत से जन्म हथियार है
- अंकित नवआशा
आप में से बहुत लोगों ने यह खबर साझा होते हुए देखा होगा कि गोरखपुर से भाजपा सांसद रवि किशन जनसंख्या नियंत्रण पर एक प्राइवेट मेंबर बिल (विधेयक) पेश करने जा रहे हैं। अब बिल पेश करना एक सांसद का काम है और यह उन्हें जरूर करना चाहिए। जानकारी के बता दूं कि संसद के दोनों सदनों में कुल दो तरह से बिल पेश होते हैं एक सरकार द्वारा (सम्बंधित मंत्रालय द्वारा) और दूसरा सांसद द्वारा प्राइवेट मेंबर बिल। और यह सभी बिल जो चार प्रकार के हो सकते हैं: ऑर्डिनरी बिल, मनी बिल, फाइनेंस बिल व संविधान संशोधन बिल। हालांकि एक पांचवा प्रकार भी होता है वह है ऑर्डिनेन्स रिप्लेसमेंट बिल।
आज बात प्राइवेट मेम्बर बिल की। मुझे समझ नहीं आता कि रवि किशन का बिल पेश करना इतनी बड़ी खबर क्यों है? इसलिए कि वह एक राजनैतिक मुद्दे को बिल के रूप में लोकसभा में पेश करेंगे जिसकी एक झलक नीति के रूप में उत्तर प्रदेश में पहले ही पेश की जा चुकी है? क्योंकि प्राइवेट मेंबर बिल का जो ऐतिहासिक रूप से हश्र हुआ है वह दयनीय ही कह सकते हैं। चलिए आपको आँकड़ों से समझाता हूँ।
2014 से 2021 के बीच दोनों सदनों को मिलाकर कुल 1585 प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया गए हैं जिसमें लोकसभा में 1263 और राज्यसभा में 322 बिल शामिल हैं। सबसे ज्यादा सन 2016 में 343 बिल पेश हुए तो वहीं 2015 में 341 बिल। 2020 के दो सत्रों में सिर्फ 12 बिल पेश हो पाए। इन 1585 में से सिर्फ 1 बिल पारित हो पाया वह भी राज्यसभा में। ट्रासंजेंडर समुदाय के अधिकारों को सुरक्षित करने वाला विधेयक। लोकसभा में पेश किए जाने से पहले ही इसपर तत्कालीन सामाजिक न्याय मंत्रालय ने लोकसभा में एक सरकार की ओर से बिल पेश कर दिया। लोकसभा द्वारा इसे पारित भी किया गया लेकिन आगे चल कर इसका कुछ भी नहीं हुआ और यह लैप्स हो गया। इसके अलावा इन 7 सालों में 1584 विधेयकों का भी कुछ नहीं हुआ। इनमें से 15 तो सांसदों ने स्वयं ही वापस ले लिए, 82 अभी तक लंबित हैं, और 1284 खुद ही लैप्स कर गए।
यह भी समझने वाली बात है कि यूपीए के 10 वर्षों के कार्यकाल में 2004 से 2014 के बीच 1264 प्राइवेट मेंबर बिल पेश किए गए थे और उस में से भी एक भी बिल कानून नहीं बन पाया था। इसी तरह 1998 से 2003 के बीच 652 बिल पेश हुए लेकिन एक भी कानून बनना तो दूर सदन से पारित भी नहीं हुआ। मतलब पिछली पांच सदनों में 1998 से 2021 के बीच 3500 से अधिक प्राइवेट मेंबर बिल पेश हुए पर एक भी कानून नहीं बन पाए। इसके विपरीत इस दौरान सरकार ने दोनों सदनों में कुल 1436 बिल पेश किए और उसमें 984 विधेयक कानून बन चुके हैं। सीधा आँकड़ा कि सरकार द्वारा पेश किये गए विधेयकों में करीब 70% विधेयक कानून बन गए वहीं सांसदों द्वारा पेश किए गए 3500 से अधिक बिल्स में से सिर्फ 2 मतलब 0.01% पारित हुए और कानून तो एक भी नहीं।
फिर एक प्राइवेट मेंबर बिल पर इतना हो हल्ला क्यों? क्या प्राइवेट मेंबर बिल्स के प्रति सदन का रुख बदलने वाला है? या फिर सरकार नहीं चाहती कि यह जनसंख्या नियंत्रण विधेयक वह पेश करे, वह अपने सांसदों से ऐसे विधेयक पारित करवाना चाहती है। अगर इस प्राइवेट मेंबर बिल पर सदन कोई सक्रिय भूमिका निभाती है तो यह निष्कर्ष निकाला जाए कि यह सरकार का ही एक विधेयक है जिसे एक सांसद पेश कर रहा है, ख़ैर इस विधेयक के अंदर का विषयवस्तु देखना होगा कि चार बच्चों (3 बेटियां व एक बेटा) के पिता जनसंख्या नियंत्रण पर कहना क्या चाहते हैं।
एक प्राइवेट मेंबर बिल पर जब हो हल्ला होने लगे तो समझिए कि वह प्राइवेट मेंबर बिल मात्र नहीं है वरना इससे कई ज्यादा महत्वपूर्ण मुद्दों पर बिल्स पेश हुए हैं और उनका कुछ नहीं हुआ।