धन व क्षमता में अंतर तो है....
- अंकित झा
प्रश्न तथा उत्तर में अंतर यह है कि उत्तर
विवेकवश अथवा ज्ञानवश उत्पन्न होते हैं वहीं प्रश्न कौतूहलवश. हालाँकि दोनों में
एक अनोखा रिश्ता है, एक-दुसरे के बिना दोनों ही का अस्तित्व नहीं. उत्तर अनुभववश
उत्पन्न होते हैं, अनुभव प्रयोगवश, प्रयोग प्रश्नवश, प्रश्न अपेक्षावश तथा अपेक्षा
उत्तरवश. प्रश्न तथा उत्तर मानव जीवन के वो सत्य हैं जो सदा ही उसकी छाँव की भांति
मानव के सामानांतर जीवन पर्यंत चलते हैं. जैसे फूलों का रसपान करने वाले भंवरे की
परछाई पुष्प पर उसके साथ रसपान करती है, भंवरा अपनी परछाई से त्रस्त होकर
प्रतिस्पर्धावश और भी अधिक रसपान करता है, जैसे ही वो उड़ता है, उसकी परछाई भी वहां
से हट जाती है और उसे इस बात से सुख मिलता है कि उसने किसी अन्य को उससे अधिक
रसपान नहीं करने दिया. मनुष्य संतृप्त है कि अन्य जंतु प्रगति नहीं कर पाए, अन्य
सभी जंतु उसके पालतू ही बन पाते हैं.
धनतेरस दिन ही ऐसा है, देवताओं के
चिकित्सक देव धन्वन्तरी का उद्गम दिवस. अर्थात समय कि अपने इच्छानुसार क्रय किया
जाए, इच्छानुसार. अब यदि ऋण लेकर खरीदी की जाए तो यह बात समझ नहीं आती. यह तो कुछ
उसी प्रकार हुआ कि मनुष्य युवावय तक सोता रहे तथा ऋण लेकर वृद्धावस्था में बालपन
जीने का प्रयास करे. निरर्थक तथा बेतुका. भारत विश्व का एक ऐसा देश है जहां लोग
खुशियाँ भी ऋण ले के प्राप्त करते हैं, दिखावे तथा प्रतिस्पर्धा की ऐसी बुरी लत लग
गयी है कि असंभव सा लगता है इससे पीछा छुड़ाना. आज कल बोनस भी त्योहारों का हिस्सा
बन गया है, कामकाजी लोगों को बोनस किसी दूध में उत्पन्न मलाई की तरह प्रतीत होता
है, पैसा तो दूध का दिया परन्तु मलाई भी मिल गया. कई बार तो बोनस के लिए आन्दोलनें
खड़ी कर दी जाती हैं. लगता है जीवन में बोनस के अतिरिक्त कुछ है ही नहीं. सही भी
है, वर्ष भर अनन्य परिश्रम करने वाले कर्मचारी यदि मलाई की अपेक्षा करते हैं तो
क्या बुरा करते हैं. दीपोत्सव पर सभी छोटी बड़ी कम्पनियाँ अपने कर्मचारियों को बोनस
के रूप में कुछ न कुछ देती हैं. सोने व चांदी के सिक्के से लेकर जीवन बीमा तथा
अंगूठियाँ. सूरत के हीरा व्यापारी सावजीभाई ढोलकिया ने बोनस इतिहास में नया उदाहरण
प्रस्तुत किया है. अपने कंपनी हरे कृष्णा डायमंड्स के अनुमानतः 1200 से अधिक
कर्मचारियों को रत्न-आभूषण, घर तथा कार बोनस के रूप में दिया है. कुछ 500
कर्मचारियों को कार, 290 कर्चारियों को घर तथा अन्य सभी को आभूषण. सूरत के व्यापर
जगत में हीरा किसी कैलाश पर विराजमान शिव से कम नहीं है. हालाँकि सूरत अपने हीरा
व्यापर के अतिरिक्त, सूत व रेशम वस्त्र व्यापार तथा अपने विभिन्न प्रकार के खमण
अर्थात नाश्तों के लिए विख्यात है. हीरा व्यापर अपने काम-काज, लाभ तथा मालिक-कर्मचारी
रिश्तों के लिए जाना जाता है, जहां हर कम्पनी किसी मंदिर की तरह है, काम पूजा है
तथा यंत्र देवता. तभी तो किसी मॉल से बड़े ऑफिस बिना सीसीटीवी कैमरे की निगरानी में
संचालित होते हैं. जब कर्मचारी उद्योग को समझने लगे तो धोखाधड़ी का प्रश्न ही नहीं
उठता है. व्यव्हार कुशल तथा वाक्चतुर मालिक अधिक पढ़े लिखे ना होने के बावजूद
रिश्ता स्थापित करके अपने कर्मचारियों से अद्भूत कला का प्रस्तुतिकरण संभव करवाते
हैं. उदहारण के लिए सावाजीभाई बस चौथे कक्षा तक पढ़े हैं, परन्तु बाज़ार तथा संसार
की समझ उन्हें एक सफल उद्योगपति बनती है.
आवश्यक यह नहीं है कि हर कंपनी अपने
कर्मचारियों को बोनस देने की प्रतिस्पर्धा में जुट जाएँ, नए नए हथकंडे अपनाए जाने
लगे. परन्तु आवश्यक यह है कि बाज़ार, देश तथा विश्व को ऐसे उदाहरण पेश किये जायें
जहां कंपनी का हर कर्मचारी गर्व से ये कह सके कि ये उसकी अपनी कंपनी है, सीसीटीवी
चोर को पकड़ते हैं चोरी नहीं रोकते है. मानवीय रिश्ते तथा अपनापन चोरी रोकते है.
चोर की कृतज्ञता कभी समाप्त नहीं होती है. मनुष्य का स्वाभाव ही ऐसा है, जो जितना
सोंचता है विध्वंश के नए तरीके भी वही अपनाता है.